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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Sunday, October 23, 2011

ये तो जुल्म हुआ रोशनाई पर

इन दिनो ब्लोगरी के लिये मनोनुकूल वक्त नही मिलता.

आदरणीय श्री दिगम्बर जी ने पुछा कि सुलभ कोई नयी गजल है तो पोस्ट लगाईये उनके विशेष अनुरोध पर कुछ पंक्तियां...


ये तो जुल्म हुआ रोशनाई पर
जो हम लिख रहे हैं मंहगाई पर

हुआ नाम जिनका सचाई पर
वही उतरे अब बेहयायी पर

मोती अश्क के वे छुपा न पाये
बिटिया की रस्मे बिदाई पर

फटेहाल बच्चे क,ख, सिखते
व्यवस्था की फटी चटाई पर

अजी क्या कहें और किसे कहें
रूठे यार की बेअदाई पर 
---

~~ आप सभी साथियों को दीप पर्व की मंगलकामनाएं !!

‍- सुलभ

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "