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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Wednesday, August 26, 2009

अहसास


(Click on image to read this poem)

7 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर कविता है बधाई

ओम आर्य said...

jinko dekha nahi chhuaa hai .......waah kya bat kahi hai aapane .....bahut bahut hi sundara bhaw

हरकीरत ' हीर' said...

अच्छा लिख रहे हैं आप ....!!

Riya Sharma said...

Nice Blog presentation n writeups too..

likhteyn rahen ...!!

Yogesh Verma Swapn said...

bahut badhia rachna. badhai.

mere blog par aagman ke liye hardik dhanyawaad.

Anonymous said...

nice one...

Unknown said...

अहसास की रचना पर कहुगा ए खुदा तू मझे कब तक आजमाएगा आगरा यही है तेरी बनायीं दुनिया तो हमे मंजूर नही !

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "