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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Tuesday, August 25, 2009

टीवी शो का मकरजाल (हास्य-व्यंग्य)


आजकल टीवी चैनलों को मिला गया एक हथियार
आये दिन रियलिटी शोज़ की करते रहते बौछार

करते रहते बौछार अश्लील-असभ्य सीन-संवादों की
इनको नहीं हैं परवाह आदर्श मर्यादा संस्कारों की

भैया एक बार हमारा जो नैतिक पतन हो जाये
बोलो फिर हम क्यूँ शरमाये सकुचाये घबराये

लाख बांटकर करोड़ कमाते देकर सबको धोखा
हिंग लगे न फिटकरी रंग एकदम चोखा

रंग एकदम चोखा, हम विष पीकर अमृत बोले
पैसे की ताकत के आगे सब बेबस सब भोले॥

2 comments:

Nirali said...

yah vyang ekdam sateek tha .

Unknown said...

नेतिकता का पतन तो हमारे समाज में प्रविष्ट बस टीवी शो एना दिखा देते

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "