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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Saturday, August 22, 2009

दो लम्हे यादों के शेर - 1

(1)

चाहो तो तुम मुझे एक लम्बा इंतिजार दो
पर कियामत तक की कोई ख़ुशी उधार दो
या तो हमारे प्यार को इक रिश्ते का नाम दो
या जो रिश्ता है दरम्यां उसे प्यार दो !!

(2)

तेरे आने से पहले कितनी झूटी थी तन्हाई
मैं कैसे क्या कहूँ, क्या है इसकी गहराई
एक समंदर सूखा रहता था ख्यालों में मेरे
अब यादें समंदर और जब तब तूफां आई !!

5 comments:

Anonymous said...

Shaandaar sher kahe hain.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

ओम आर्य said...

बेहतरिन रचना अतिसुन्दर

sujit said...

यादो का जो दौर वो बीता था, आपकी सायरी ने उनको अंजाम दे दया, उठने वाली हर लहरों को एक नाम दे दिया, उत्क्रिस्ट रचना

Urmi said...

वाह बहुत खूब! लाजवाब शेर ! मुझे बेहद पसंद आया!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

अच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई....

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "