Pages

हम आपके सहयात्री हैं.

अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Wednesday, June 24, 2009

हम, आप और वक़्त.

कमबख्त रोटी के जुगाड़ में आज हमारे पास दुआ मांगने लायक भी वक़्त नहीं है
और आपके पास वक़्त इतना की हर रोटी को शिकायतों की चासनी में डुबो कर चबाते है।

&&

ख्वाबे गफलत से आज हमको कर दो रुखसत
कुछ इस तरह जाम पे जाम बनाए जा साकी.
हर पैमाने को हंस कर उठाएंगे तबतक, जबतक
रहेगा आँखों में एक भी कतरा दर्द का बाकी.

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ढंग ए आप ने दर्द व्याण किया.
बहुत अच्छा लगा

लिंक विदइन

Related Posts with Thumbnails

कुछ और कड़ियाँ

Receive New Post alert in your Email (service by feedburner)


जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "